ज़रूरत पड़े तो एटम बम भी … स्ट्रैटेजिक बॉम्बर्स आज भी हैं आसमान के ‘दादा’

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ज़रूरत पड़े तो एटम बम भी … स्ट्रैटेजिक बॉम्बर्स आज भी हैं आसमान के ‘दादा’


यूक्रेन ने हाल ही में रूस के कई हवाई अड्डों पर ड्रोन से हमला कर उसके TU-95 जैसे भारी, महंगे और वैश्विक स्तर पर स्ट्रैटेजिक दबदबा बनाए रखने वाले बॉम्बर्स को नष्ट कर दिया. मगर आज के दौर में, जब छोटे-छोटे ड्रोन भी इन दिग्गजों को ज़मीन धुल चाटने पर मजबूर कर सकते हैं, क्या वाकई इनकी दहशत वैसी ही बनी रह गई है?

“स्ट्रैटेजिक बॉम्बर्स” आसमान के बादशाह होते हैं. जैसे समुद्र में एयरक्राफ्ट कैरियर अपनी ताकत और मौजूदगी से क्षेत्रीय शक्ति का एहसास कराते हैं, वैसे ही हवा में स्ट्रैटेजिक बॉम्बर्स अपनी दहशत और क्षमता से यह साबित करते हैं कि यह इलाका हमारा है. ये बॉम्बर्स न केवल दुश्मनों को डराने का जरिया हैं, बल्कि एक मजबूत संदेश भी देते हैं कि हम इस क्षेत्र के मालिक हैं और किसी भी खतरे का जवाब देने के लिए पूरी तरह तैयार हैं. इसीलिए, डिटरेंस की दुनिया में समुद्र और आसमान दोनों की अपनी-अपनी भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है, जो किसी भी देश की सामरिक ताकत को दोगुना कर देती है.

लंबी दूरी तक मार करने वाले स्ट्रैटेजिक बॉम्बर्स (बमवर्षक विमान) ही अब तक एकमात्र ऐसा जरिया रहे हैं, जिनसे युद्ध में परमाणु हथियार का इस्तेमाल किया गया है. 80 साल पहले, 6 अगस्त 1945 के दिन अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा पर पहला परमाणु बम गिराया था, इस हमले को अंजाम देने वाले बी-29 विमान “एनोला गे” को इतिहास के सबसे प्रसिद्ध विमानों में गिना जाता है. बी-29 बॉम्बर्स 6,000 किमी की लम्बी दूरी तय कर सकता था और 9 टन तक का बम ले जाने में सक्षम था. 1945 के बाद से ही बॉम्बर्स परमाणु त्रिशक्ति (Nuclear Triad) का अहम हिस्सा बने हुए हैं. इस त्रिशक्ति के बाकी दो हिस्से हैं — ज़मीन से दागी जाने वाली अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलें (ICBM), जो 1959 में सेवा में आईं, और समुद्र से चलने वाली पनडुब्बी बैलिस्टिक मिसाइलें (SLBM), जिनकी शुरुआत 1960 में हुई.

आज के दौर में भी लंबी दूरी तक हमला करना एक जरूरी स्ट्रैटेजिक हिस्सा बना हुआ है, इसलिए ऐसे बॉम्बर्स अभी भी आवश्यक हैं. भले ही दुनिया से परमाणु हथियार पूरी तरह खत्म हो जाएं, ये बॉम्बर्स पारंपरिक हथियारों के साथ मिशन पूरा करते रहेंगे, इन्हें हटाने की शायद ही कभी जरूरत हो. साथ ही, जब तक परमाणु हथियारों का खतरा मौजूद है, तब तक न्यूक्लियर डिटरेंस यानी दुश्मन को जवाबी हमले के डर से रोकने के लिए इन स्ट्रैटेजिक बॉम्बर की अहम भूमिका बनी रहेगी.

“गिउलिओ डौहेत” – एक इतालवी जनरल और वायु शक्ति के सिद्धांतकार और वायु शक्ति के शुरुआती नेताओं में से एक थे. उन्होंने बॉम्बर्स की भूमिका को इस तरह समझाया था: “अब यह संभव है कि दुश्मन की मजबूत सुरक्षा रेखाओं को तोड़े बिना भी उनके पीछे बहुत अंदर तक जाया जा सके — और यह सब केवल वायुशक्ति के कारण संभव है”. पहले विश्व युद्ध से ही स्ट्रैटेजिक बॉम्बर्स दुश्मन की हिम्मत तोड़ने में बड़ी भूमिका निभाते आए हैं. ये विमान दुनिया के अलग-अलग इलाकों में कई तरह के खतरों को रोकने की ताकत रखते हैं.

आधुनिक युग में “स्ट्रैटेजिक बॉम्बर्स” इतने अहम क्यों?
स्ट्रैटेजिक बॉम्बर्स इसलिए भी बेहद महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इन्हें मोर्चे (फ्रंटलाइन) से काफी दूर तैनात किया जा सकता है, फिर भी ये प्रशांत महासागर जैसी विशाल दूरियों को पार कर सकते हैं. ये दुश्मन की उन्नत वायु रक्षा प्रणालियों से बच निकलने में सक्षम होते हैं और बड़ी मात्रा में कम दूरी के, लेकिन किफायती हथियार ले जाकर सटीक हमले कर सकते हैं.

आज के समय में ज़मीन से चलने वाली मिसाइलें उन एयरबेस और एयरक्राफ्ट कैरियर्स के लिए बड़ा खतरा बन गई हैं, जहाँ से टैक्टिकल फाइटर जेट ऑपरेशन करते हैं. लगभग सभी प्रमुख देशों के पास अब क्रूज़ और छोटी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों का बड़ा जखीरा है. युद्ध की स्थिति में ये देश एक साथ भारी मिसाइल हमले कर सकते हैं, जिससे हवाई अड्डे और समुद्र में मौजूद जहाज़ गंभीर रूप से निशाना बन सकते हैं—खासतौर पर वे जो उनके तट से 1,000 मील के दायरे में आते हैं.

ज़मीन पर खड़ा स्टील्थ फाइटर भी हमला होने पर पारंपरिक विमान जितना ही असुरक्षित होता है. ऐसे में स्ट्रैटेजिक बॉम्बर्स, जो दूर के ठिकानों से उड़ान भरते हैं, कहीं अधिक सुरक्षित रहते हैं और फिर भी दुनिया के किसी भी कोने में सटीक हमला करने में सक्षम होते हैं. हालांकि देशों के पास ऐसी लंबी दूरी की मिसाइलें हैं जो इन दूरदराज़ ठिकानों तक पहुंच सकती हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश परमाणु हथियार ले जाने के लिए बनी होती हैं और इनकी संख्या भी सीमित है. यदि लंबी दूरी तक मार करने वाले स्ट्रैटेजिक बॉम्बर्स को एंटी-शिप क्रूज़ मिसाइलों से लैस किया जाए, तो सिद्धांत रूप में ये दुश्मन के युद्धपोतों को भी समुद्र में खोजकर नष्ट करने में उपयोगी हो सकते हैं. यह उन्हें पारंपरिक वायुसेना और नौसेना अभियानों के बीच एक प्रभावी सेतु बनाता है.

195 देशों में सिर्फ 3 के पास हैं स्ट्रैटेजिक बॉम्बर्स
वर्तमान में, केवल तीन देश अमेरिका, रूस और चीन के पास सक्रिय स्ट्रैटेजिक बॉम्बर्स विमान हैं. ये विमान परमाणु और पारंपरिक हथियारों के साथ लंबी दूरी तक हमले करने में सक्षम होते हैं और वैश्विक सैन्य शक्ति के प्रतीक माने जाते हैं. वर्त्तमान में सक्रिय स्ट्रैटेजिक बॉम्बर्स की सूची:
अमेरिका
B-52 Stratofortress – 72 विमान
B-1B Lancer – 40 विमान
B-2 Spirit – 18 विमान

रूस
Tu-95MS – 47 विमान
Tu-160 – 15 विमान

चीन
Xi’an H-6 – 150 विमान

भारत
भारत के पास वर्तमान में कोई स्ट्रैटेजिक बॉम्बर्स नहीं है. हांलाकि भारत के पास वर्त्तमान में 130 जैगुआर फाइटर बॉम्बर्स हैं, जो परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम हैं.

स्ट्रैटेजिक बॉम्बर्स का भविष्य
आज की हाई-टेक वॉरफेयर दुनिया में, जब हाइपरसोनिक मिसाइलें, ड्रोन और साइबर अटैक जैसे अत्याधुनिक हथियार सामने हैं—तो सवाल उठता है, क्या स्ट्रैटेजिक बॉम्बर्स अब भी प्रासंगिक हैं?

सीधा जवाब है—हां, और शायद पहले से भी ज़्यादा. क्यूंकि अमेरिका के B-2 Spirit या अब आने वाले B-21 Raider जैसे स्टील्थ बॉम्बर्स, चीन का H-20 या रूस का Tu-160—ये सभी केवल बम गिराने के लिए नहीं बने, बल्कि ये एक स्ट्रैटेजिक डिटरेंस का हिस्सा हैं. ये दुश्मन को यह संकेत देते हैं कि किसी भी खतरे की स्थिति में देश हजारों किलोमीटर दूर जाकर भी जवाबी कार्रवाई कर सकता है.

स्ट्रैटेजिक बॉम्बर्स आज सिर्फ परमाणु हथियारों के कैरियर नहीं, बल्कि सर्जिकल स्ट्राइक, स्टैंड-ऑफ वेपन लॉन्च, और इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर तक के लिए सक्षम हैं. तो चाहे वो Indo-Pacific में चीन का मुकाबला हो या NATO के सामने रूस की चुनौती—बॉम्बर्स अब भी किसी भी सुपरपावर के महत्वपूर्ण स्ट्रेटेजिक हथियार हैं



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