वडोदरा34 मिनट पहले
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गुजरात के वडोदरा में महिसागर नदी में पुल बुधवार को सुबह 7:30 बजे टूटा था।
गुजरात के वडोदरा जिले में 40 साल पुराने एक पुल का 12 मी. लंबा स्लैब अचानक ढह गया। हादसा सुबह 7:55 बजे पादरा तालुका में हुआ, उस वक्त पुल पर दो ट्रक, दो पिकअप वैन समेत 9 वाहन थे, जो 110 फीट नीचे महिसागर नदी में जा गिरे। जबकि एक ट्रक पुल के छोर पर लटक गया। हादसे में 2 बच्चों समेत 15 लोगों की मौत हो गई। चार अभी लापता हैं।
मोरबी पुल हादसे के तीन साल बाद गुजरात में कोई दूसरा ब्रिज गिरा है। गंभीरा ब्रिज मध्य और दक्षिण गुजरात को जोड़ता है। पादरा के पास करीब 25 कंपनियां हैं। इनके 20 हजार से ज्यादा कर्मचारी हर दिन इस पुल को पार कर काम पर पहुंचते हैं।
यूपी राज्य सेतु निगम ने 1981-82 में बनाया था ब्रिज

पुल टूटने के बाद एक टैंकर टूटे सिरे पर अटक गया। हादसे के 24 घंटे बाद भी यह फंसा हुआ है।
हादसे का शिकार हुए गंभीरा पुल का निर्मा वाली यूपी राज्य सेतु निगम ने 1981-82 में किया था। कंपनी का दावा किया था कि इस ब्रिज के निर्माण में ‘क्रॉस आर्म पियर कैप’ तकनीक का इस्तेमाल किया गया था। इस टेक्नोलॉजी में पिलर की दूरी ज्यादा होती है। एक पिलर से से दूसरे पिलर को जोड़ने के लिए गार्डर लगाए जाते हैं। हालांकि, इंजीनियर्स का कहना है इक इस टेक्नोलॉजी में कंपनी और ठेकेदारों को फायदा होता है। क्योंकि, इस तकनीक से पुल निर्माण में सीमेंट-कंक्रीट की खपत कम हो जाती है।
गुजरात के रोड्स एंड बिल्डिंग डवलपमेंट (आरएंडबी) के सेवानिवृत्त इंजीनियर शाह ने बताया कि गंभीरा पुल का निर्माण 1981-82 में उत्तर प्रदेश राज्य सेतु निगम ने कराया था। उस समय कंपनी दावा कर रही थी कि उसने देश में पहली बार ‘क्रॉस आर्म पियर कैप’ तकनीक अपनाई है और इसी तकनीक से पहला गंभीरा पुल बनाया है। पुल में प्री-स्ट्रेसिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया था।
अगर कोई पुल 40-45 साल में खराब होकर गिर जाए तो इसे बेहद गंभीर माना जाना चाहिए है। इससे साफ है कि पुल के निर्माण में काफी लापरवाही बरती गई है। पुल के निर्माण में घटिया सामग्री इस्तेमाल होने की बात सामने आई है। इस कंपनी को ब्लैक लिस्टेड किया जाना चाहिए। कंपनी ने जो अन्य पुल बनाए हैं, उनकी भी जांच होनी चाहिए।
2015 में पुल की बेयरिंग बदलनी पड़ी थी

ब्रिज पर ट्रैफिक चल रहा था। इसके टूटने से 2 ट्रक, 2 कारें और एक ई-रिक्शा नदी में गिर गया था।
जांच अधिकारी ने बताया कि वर्ष 2015 में भी गंभीरा पुल जर्जर पाया गया था। उस समय सरकार ने इसका निरीक्षण करवाया था और बेयरिंग बदलनी पड़ी थी। यह स्थिति इसलिए बनी थी, क्योंकि पुल के निर्माण में अच्छी सामग्री का इस्तेमाल नहीं किया गया था। इसे बड़ी लापरवाही कहा जाता है। अन्य पुलों का भी निरीक्षण किया जाना चाहिए। गंभीरा पुल का निर्माण 1981-82 में उत्तर प्रदेश राज्य सेतु निगम ने किया था।
2022 में ही नया पुल बनाने की मांग की गई थी गंभीरा ब्रिज हादसे में प्रशासन ने गंभीर लापरवाही बरती गई है। यह पुल बेहद जर्जर हो चुका था, इसलिए इसे यातायात के लिए बंद कर वर्ष 2022 में ही एक नया पुल बनाने की मांग की गई थी। अगस्त 2022 में जब पुल की जर्जर स्थिति के बारे में सरकार को बताया गया तो गांधीनगर से विशेषज्ञों की एक टीम ने पहुंचकर इसके ढांचे और खंभों का परीक्षण किया गया था। पुल में खराबी होने के बावजूद, रिपोर्ट को दबा दिया गया।
कंपनी ने गंभीरा पुल के 4 साल बाद, सिंध्रोट पुल का निर्माण किया था

स्थानीय लोगों ने नदी मे गिरी 5 गाड़ियों में फंसे लोगों को निकालने के लिए रस्सियों का सहारा लिया।
यूपी राज्य सेतु निगम को गुजरात सरकार द्वारा टेंडर जारी किया गया था। यह टेंडर यूपी राज्य सेतु निगम को मिला था। इसी कंपनी ने गंभीरा ब्रिज के 4 साल बाद महीसागर नदी पर ही सिंध्रोट पुल का भी निर्माण किया था। अधिकारी ने कहा कि इसके अलावा, माही कोटर पुल सहित 5 से 6 पुल बनाए गए थे। उन अन्य पुलों की भी जांच होनी चाहिए।
नया पुल के लिए 3 महीने पहले ही 212 करोड़ रुपए मंजूर हुए हैं यहां ज्यादा ट्रैफिक लोड को देखते हुए ही सीएम ने महिसागर नदी पर नया पुल बनाने के लिए तीन महीने पहले ही 212 करोड़ रु. मंजूर किए थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हादसे पर शोक जताते हुए मृतकों के परिजनों को मदद का ऐलान किया है।