Monday, November 3, 2025
Homeराज्यमहाराष्ट्रCJI बोले-अधिकारों की रक्षा के लिए अदालतों की सक्रियता जरूरी: लेकिन...

CJI बोले-अधिकारों की रक्षा के लिए अदालतों की सक्रियता जरूरी: लेकिन यह ज्यूडिशियल टेररिज्म न बने; माता-पिता का संघर्ष याद कर भावुक हुए जस्टिस गवई


  • Hindi News
  • National
  • Supreme Court Chief Justice Of India B R Gavai On Judicial Activism Judicial Terrorism

नागपुर3 दिन पहले

  • कॉपी लिंक

CJI गवई शुक्रवार को नागपुर बार एसोसिएशन के कार्यक्रम में शामिल हुए।

भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने शुक्रवार को कहा कि संविधान और नागरिकों के अधिकारों को बनाए रखने के लिए न्यायिक सक्रियता जरूरी है। यह बनी रहेगी, लेकिन इसे न्यायिक आतंकवाद में नहीं बदला जा सकता।

CJI ने कहा कि भारतीय लोकतंत्र के तीनों अंगों विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को उनकी सीमाएं दी गई हैं। तीनों को कानून के अनुसार काम करना होगा। जब संसद कानून या नियम से परे जाती है, तो न्यायपालिका हस्तक्षेप कर सकती है।

CJI गवई नागपुर जिला कोर्ट बार एसोसिएशन के कार्यक्रम में बोल रहे थे। यहां उन्होंने कुछ किस्से साझा किए। अपने माता-पिता के संघर्षों के बारे में बताया। अपने जीवन पर माता-पिता के प्रभाव के बारे में बात करते हुए भावुक हो गए।

CJI बीआर गवई को नागपुर जिला कोर्ट बार एसोसिएशन ने सम्मानित किया।

CJI बीआर गवई को नागपुर जिला कोर्ट बार एसोसिएशन ने सम्मानित किया।

CJI बोले- पिता भी बनना चाहते थे वकील

CJI ने कहा, “मैं आर्किटेक्ट बनना चाहता था, लेकिन मेरे पिता ने मेरे लिए अलग सपने देखे थे। वह हमेशा चाहते थे कि मैं वकील बनूं, एक ऐसा सपना जो वह खुद पूरा नहीं कर सके। मेरे पिता ने खुद को अंबेडकर की सेवा में समर्पित कर दिया। वह खुद एक वकील बनना चाहते थे, लेकिन स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा होने के कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, इसलिए वह अपनी इच्छा पूरी नहीं कर सके।”

जस्टिस गवई ने बताया कि वे संयुक्त परिवार में रहते थे, जिसमें कई बच्चे थे और सारी जिम्मेदारी उनकी मां और चाची पर थी। इसलिए अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए उन्होंने आर्किटेक्ट बनने के अपने सपने को छोड़ दिया।

जानिए क्या न्यायिक सक्रियता और न्यायिक आतंकवाद

  • न्यायिक सक्रियता या ज्यूडिशियल एक्टिविज्म : न्यायिक सक्रियता का मतलब होता है, जब अदालतें खास तौर पर हाईकोर्ट या सु्प्रीम कोर्ट अपने पारंपरिक दायरे से आगे बढ़कर ऐसे मामलों में हस्तक्षेप करती हैं जहां कार्यपालिका यानी सरकार और विधायिका यानी संसद/विधानसभा निष्क्रिय या विफल रही हो। यानी जब अदालतें खुद पहल करके किसी मुद्दे पर फैसला देती हैं, या सरकार को दिशा-निर्देश देती हैं, जिससे आम जनता के अधिकारों की रक्षा हो उसे ज्यूडिशियल एक्टिविज्म कहते हैं।
  • न्यायिक आतंकवाद या ज्यूडिशियल टेररिज्म : यह कोई कानूनी शब्द नहीं है, और इसका इस्तेमाल करना न्यायपालिका का अपमान माना जाता है। जब कोई पक्ष मानता है कि अदालत निष्पक्ष नहीं है। या अदालत बार-बार ऐसे आदेश देती हो जो किसी खास राजनीतिक विचारधारा या समूह के खिलाफ लगते हैं। जब अदालत या न्यायिक संस्थान अपने निर्णयों या दखल से किसी पक्ष को ऐसा महसूस कराए कि उन्हें डराया, धमकाया या दबाया जा रहा है, तो कुछ लोग आलोचना में इस स्थिति को ज्यूडिशियल टेररिज्म कहा जाता है।
CJI गवई जिला कोर्ट बार एसोसिएशन के कार्यक्रम में 3 घंटे रहे। लोगों से बातचीत की।

CJI गवई जिला कोर्ट बार एसोसिएशन के कार्यक्रम में 3 घंटे रहे। लोगों से बातचीत की।

2015 में हो गया था CJI गवई के पिता का निधन

जब मेरे नाम की सिफारिश हाईकोर्ट में जज के पद के लिए की गई, तो मेरे पिता ने कहा कि अगर तुम वकील बने रहोगे, तो तुम केवल पैसे के पीछे जाओगे, लेकिन अगर तुम जज बन गए तो तुम अंबेडकर द्वारा बताए गए रास्ते पर चलोगे और समाज के लिए अच्छा करोगे।

गवई ने कहा, “मेरे पिता ने भी सोचा था कि उनका बेटा एक दिन भारत का मुख्य न्यायाधीश बनेगा, लेकिन वह ऐसा होते देखने के लिए जीवित नहीं रहे, हमने उन्हें 2015 में खो दिया, लेकिन मुझे खुशी है कि मेरी मां वहां हैं।”

पिछले 2 दिन में दिए CJI गवई के 2 बयान…

  • जज होना 9 से 5 की नौकरी नहीं, यह देश की सेवा, लेकिन कठिन काम छत्रपति संभाजी नगर में बॉम्बे हाईकोर्ट, औरंगाबाद बेंच की एडवोकेट यूनियन की तरफ से रखे गए अभिनंदन समारोह में CJI ने कहा था- एक जज अकेले काम नहीं कर सकता है। जज होना नौ से पांच की नौकरी नहीं है। यह राष्ट्र की सेवा है, लेकिन यह एक कठिन काम भी है। पढ़ें पूरी खबर…
  • संसद नहीं, संविधान सबसे ऊपर, लोकतंत्र के तीनों हिस्से इसके अधीन CJI गवई ने बुधवार को कहा कि भारत का संविधान सबसे ऊपर है। हमारे लोकतंत्र के तीनों अंग (न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका) संविधान के अधीन काम करते हैं। CJI गवई ने कहा कि कुछ लोग कहते हैं कि संसद सर्वोच्च है, लेकिन मेरी राय में संविधान सर्वोपरि है। CJI गवई ने कहा कि संसद के पास संशोधन करने की शक्ति है, लेकिन वह संविधान के मूल ढांचे को बदल नहीं सकती। पढ़ें पूरी खबर…

————————————————————–

CJI बीआर गवई से जुड़ी ये खबरें भी पढ़ें…

CJI गवई बोले- जज जमीनी हकीकत नजरअंदाज नहीं कर सकते; न्यायपालिका का लोगों से दूरी बनाए रखना असरदार नहीं

बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के इवेंट में CJI बीआर गवई ने कहा था कि जज जमीनी हकीकत को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं। CJI गवई ने कहा था कि आज की न्यायपालिका मानवीय अनुभवों की जटिलताओं को नजरअंदाज करते हुए कानूनी मामलों को सख्त काले और सफेद शब्दों में देखने का जोखिम नहीं उठा सकती।

सीजेआई ने इस बात पर जोर दिया कि न्यायपालिका में लोगों से दूरी रखना असरदार नहीं है। उन्होंने इस धारणा को खारिज कर दिया कि सुप्रीम कोर्ट के जजों को लोगों से जुड़ने से बचना चाहिए। पढ़ें पूरी खबर…

जस्टिस गवई का राजनीति में एंट्री से इनकार: बोले- रिटायरमेंट के बाद कोई पद नहीं लूंगा, देश खतरे में हो तो SC अलग नहीं रह सकता

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी.आर. गवई ने रिटायर होने के बाद पॉलिटिक्स में एंट्री लेने से इनकार किया। उन्होंने कहा- CJI के पद पर रहने के बाद व्यक्ति को कोई जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए। रविवार को मीडिया से बातचीत के दौरान उन्होंने ये बात कही। उन्होंने कहा- 14 मई को बुद्ध पूर्णिमा के शुभ अवसर पर देश के CJI पद की शपथ लेना मेरे लिए बहुत सौभाग्य की बात है। पढ़ें पूरी खबर…

खबरें और भी हैं…



Source link

RELATED ARTICLES
- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments