‘ट्रंप साहब तो बहुत कुछ बोलते रहते हैं… सब कुछ अगर इतना सीरियसली लोगे तो कैसे चलेगा…’ बीजेपी के एक शीर्ष नेता ने इस महीने की शुरुआत में मुझसे यह बात कही थी. यह वाक्य ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की हरकतों और बयानों को लेकर भारत की निराशा को बखूबी बयां करता है.
ईरान के जरिये अमेरिका को मैसेज
अब जबकि अमेरिका ने ईरान पर हमला कर दिया है, प्रधानमंत्री मोदी और ईरान के राष्ट्रपति पेज़ेश्कियान के बीच 45 मिनट लंबी बातचीत हुई. इसमें पीएम मोदी ने तनाव कम करने की अपील की और पेज़ेश्कियान ने भारत को ‘मित्र’ बताते हुए क्षेत्रीय शांति और स्थिरता बहाल करने में भारत की भूमिका को अहम बताया.
मुनीर को दावत के पीछे ट्रंप का गेम
भारत के लिए सबसे बड़ा झटका तब लगा जब ट्रंप ने पाकिस्तान के सेना प्रमुख असीम मुनीर को व्हाइट हाउस में लंच पर बुलाया. हां, वही असीम मुनीर जिसे भारत पहलगाम आतंकी हमले का मास्टरमाइंड मानता है. वही मुनीर जो दो-राष्ट्र सिद्धांत का समर्थक है, जो कश्मीर को पाकिस्तान के ‘गले की नस’ कहता है और हिंदू-मुसलमान के बीच भेद की नीति को आगे बढ़ाता है. यानी संक्षेप में, पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का एक प्रमुख चेहरा.
ट्रंप अमेरिकी की सत्ता में इस वादे के साथ वापस आए थे कि वे रूस-यूक्रेन और इजरायल-फिलिस्तीन के बीच चल रहे दो युद्धों को खत्म करेंगे. हालांकि अब हमारे सामने चार युद्ध हैं… 13 जून को शुरू हुआ इजरायल-ईरान युद्ध, जिसमें अब अमेरिका भी कूद पड़ा है. अमेरिकी एयरफोर्स ने रविवार को ईरान पर एक बड़ा सैन्य हमला कर दिया, जिसमें उसके तीन बड़े परमाणु ठिकानों को तबाह किया गया. ट्रंप ने इस तरह अमेरिका की सेना को सीधे इस युद्ध में झोंक दिया.
क्या हम अब तीसरे विश्व युद्ध की ओर बढ़ रहे हैं?
पाकिस्तान की ईरान से 900 किलोमीटर लंबी सीमा लगती है. वह अमेरिका के लिए एक महत्वपूर्ण साझेदार बनता जा रहा है, ताकि वह तेहरान पर बढ़त बना सके. पाकिस्तान भले ही सार्वजनिक रूप से ईरान के साथ खड़ा नजर आए, लेकिन उसकी असली कार्रवाई कुछ और संकेत दे सकती है.
भारत का लक्ष्य यह है कि वैश्विक मंच पर भारत और पाकिस्तान को एक साथ नहीं जोड़ा जाए, जैसे पहले था. लेकिन इसके साथ-साथ अमेरिका के साथ व्यापार समझौते की बातचीत को भी पटरी पर बनाए रखना है.
पाकिस्तान पर रुख बदलते पलटूबाज़ ट्रंप
सच कहें तो भारत यह तय नहीं कर सकता कि ट्रंप किसे लंच पर बुलाएं. भारत को वाशिंगटन की हर हरकत पर घबराने की भी जरूरत नहीं है. लेकिन भारत को यह अमेरिका को साफ बता देना चाहिए कि हमारे लिए असीम मुनीर एक रेड लाइन है. वह एक कट्टरपंथी है और 22 अप्रैल से 10 मई के बीच तनाव बढ़ाने का मुख्य जिम्मेदार भी. भारत और अमेरिका दोस्त हैं, लेकिन दोस्तों के बीच भी कुछ सीमाएं होती हैं.
अमेरिका को समझाना होगा भारत का ‘नया नार्मल’
नई दिल्ली की चिंता यह है कि वॉशिंगटन अब उसी देश को रणनीतिक भागीदार मान रहा है जो भारत में आतंकवाद फैलाता है. इसे ‘बेतुकेपन का सर्कस’ कह सकते हैं… ट्रंप, जो एक झूठे दावे से युद्ध रोकने का श्रेय ले रहे हैं, वही अब नोबेल पुरस्कार के लिए उस देश की तरफ नामित हो रहे हैं जिसने पहलगाम का आतंकी हमला रचा. और इसे और भी विडंबनापूर्ण बनाता है उसका चेहरा, एक कट्टरपंथी असीम मुनीर है.
अगर अमेरिका पाकिस्तान को वैधता देने की कोशिश करता है, तो भारत अब मूक दर्शक बनकर नहीं रहेगा.
मोदी ने ट्रंप को 35 मिनट की कॉल में दो टूक शब्दों में अपनी बात कह दी है और अमेरिका में रुकने के न्यौते को ठुकराकर यह सुनिश्चित किया कि कहीं व्हाइट हाउस में एक ही दिन, शायद एक ही वक्त पर, मोदी और मुनीर की मौजूदगी से कोई राजनयिक जाल न बिछा हो. मोदी ट्रंप का खेल समझ गए. और ईरान से उनकी बातचीत यह दिखा रही है कि अब भारत भी खेल खेलने को तैयार है.